जबलपुर: डीआईजी बंगला बना ‘निजी संपत्ति’! एक साल बाद भी पूर्व डीआईजी टीके विद्यार्थी का कब्जा बरकरार, नए डीआईजी को एसएएफ क्वार्टर में ठहरना पड़ा, मुख्यालय मौन
जबलपुर। पुलिस महकमे की साख पर सवाल खड़ा करने वाला मामला सामने आया है। पूर्व डीआईजी तुषारकांत विद्यार्थी, जो अब भोपाल मुख्यालय में पदस्थ हैं, ने स्थानांतरण के एक साल बाद भी जबलपुर का डीआईजी बंगला खाली नहीं किया। वर्तमान डीआईजी अतुल सिंह को मजबूरन रांझी स्थित एसएएफ के सरकारी आवास में रहना पड़ रहा है। यह प्रकरण अब विभागीय गलियारों में “सरकारी कब्जा कांड” के नाम से चर्चित है।
90 दिन का नियम, 365 दिन से उल्लंघन-
सरकारी नियमों के मुताबिक, स्थानांतरण के बाद 90 दिन के भीतर आवास खाली करना अनिवार्य होता है। जरूरत पड़ने पर अवधि बढ़ाई जा सकती है, पर इसके लिए लाइसेंस शुल्क का भुगतान जरूरी है। सूत्रों का दावा है कि न तो विद्यार्थी ने बंगला खाली किया, और न ही कोई शुल्क जमा कराया। इस पूरे मामले को “बैचमेट संस्कृति” की ढाल मिल गई है, क्योंकि विद्यार्थी और वर्तमान डीआईजी अतुल सिंह एक ही बैच के अधिकारी हैं।
मुख्यालय की खामोशी पर उठे सवाल-
मुख्यालय के नियम कहते हैं कि निर्धारित अवधि पार करने पर अधिकारी को दंडात्मक किराया और अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। लेकिन इस खुले उल्लंघन पर मुख्यालय की सन्नाटेदार चुप्पी विभाग की साख पर धब्बा बनती जा रही है। अधीनस्थ अफसरों के बीच चर्चा है कि “जब वरिष्ठ अफसर ही नियमों को ताक पर रखें, तो निचले स्तर पर अनुशासन की उम्मीद बेमानी है।”
क्या प्रमोटी अफसरों के लिए अलग नियम?
विभागीय हलकों में यह सवाल तेज़ी से उठ रहा है क्या प्रमोटी आईपीएस अधिकारियों के लिए नियम अलग हैं?
कई वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है, “जब डीआईजी स्तर का अधिकारी ही सरकारी संपत्ति पर कब्जा जमाए रखे, तो यह पूरे सिस्टम की नैतिक गिरावट का प्रतीक है।”
