जबलपुर:अपने ही डीई से पटरी नहीं बैठा पा रहे एसई सिटी,फटकार और प्रताड़ना से नाराज़ अधिकारी, शहर में चरमराया बिजली सिस्टम, परेशान हो रहे लोग

जबलपुर। शहर की बिजली आपूर्ति व्यवस्था संभाल रहे अधीक्षण अभियंता (सिटी) संजय अरोरा की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि अरोरा अपने ही अधीनस्थों से तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। बात-बात पर फटकार और प्रताड़ना के चलते ज्यादातर डीई (कार्यपालन अभियंता) असंतुष्ट हैं। यही कारण है कि फील्ड का काम प्रभावित हो रहा है और इसका खामियाज़ा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।
डीई के भरोसे चल रही व्यवस्था-
शहर सर्किल में इस समय पांच कार्यपालन अभियंता (डीई) पदस्थ हैं। ये अधिकारी अपने दायित्वों का निर्वहन बखूबी कर रहे हैं और किसी तरह शहर की बिजली व्यवस्था संभाले हुए हैं। जबकि सामान्य तौर पर एसई की सफलता अधीनस्थों के साथ तालमेल पर निर्भर करती है। लेकिन अरोरा की कार्यशैली में संवाद की बजाय दबाव और प्रताड़ना हावी है, जिसके चलते टीम वर्क कमजोर हुआ है।
फील्ड में भी गायब रहते हैं-
शहर के विभिन्न संभागों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और विजय नगर में पदस्थ डीई लगातार फील्ड पर सक्रिय रहते हैं। लेकिन अधिकारियों का आरोप है कि एसई सिटी खुद फील्ड में नदारद रहते हैं। मौके पर अनुपस्थिति और फील्ड से दूरी ने बिजली आपूर्ति की निगरानी और समाधान की प्रक्रिया को और कमजोर कर दिया है। आम लोगों की भी यह शिकायत हे कि अरोरा फोन तक नहीं उठाते हे, कम्पलेन का निराकरण होना तो दूर की बात है।
कटनी में भी विवादों से घिरे रहे-
सूत्रों के मुताबिक, अरोरा का कार्यकाल जबलपुर आने से पहले कटनी में भी विवादों से घिरा रहा। वहां भी अधीनस्थ अधिकारियों से टकराव, कामकाज में मनमानी और नेताओं की पैरवी कर पोस्टिंग हासिल करने की चर्चा आम रही। यही सिलसिला अब जबलपुर में भी दोहराया जा रहा है।
अफसर नाराज़, शिकायत से बचते हैं-
सूत्र बताते हैं कि अधीनस्थ अधिकारी अंदरखाने बेहद नाराज़ हैं, लेकिन कोई भी औपचारिक शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। वजह एसई के हौसले बुलंद हैं और विरोध की स्थिति में अधीनस्थों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही खामोशी अरोरा की कार्यप्रणाली को और ताकत दे रही है।
जनता भुगत रही नतीजा-
अधिकारियों के बीच तालमेल की कमी और एसई की फील्ड से दूरी का सीधा असर आम जनता पर पड़ रहा है। बिजली सप्लाई में गड़बड़ी, समय पर निरीक्षण न होना और समस्याओं का समाधान देर से होना अब आम बात हो चुकी है। सवाल उठ रहा है कि जनता कब तक इस नौकरशाही खींचतान की कीमत चुकाती रहेगी?