डिंडौरी # एक करोड़ की लागत से रानी अवंती बाई की बलिदान स्थल का होगा कायाकल्प

पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने रानी अवंती बाई के बलिदान स्थल पर संग्रहालय एवं अन्य विकास कार्याे का भूमिपूजन किया
डिंडौरी, गणेश मरावी। वीरांगना रानी अवंती बाई के जन्मदिवस के अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने बुधवार को बालपुर में रानी अवंती बाई के बलिदान स्थल पर संग्रहालय एवं अन्य विकास कार्याे (लागत एक करोड़ रूपए) का भूमिपूजन किया। जिसमें 70 लाख रूपए की लागत से संग्रहालय भवन, पाथवे, पार्किंग विकास, दिवस बसेरा अन्य उन्नयन कार्य तथा 30 लाख रूपए की लागत से वीरांगना रानी अवंतीबाई के जीवन परिचय पर आधारित डिस्पले कार्य, पेंटिंग कार्य, म्यूरल कार्य, साउण्ड सिस्टम, बाह्य विद्युतीकरण सहित अन्य कार्य किए जायेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने वीरांगना रानी अवंती बाई के समाधि स्थल पर दीप प्रज्जवलित कर पुष्पांजलि अर्पित कीं। इस दौरान उन्होंने बलिदान स्थल परिसर में पौधरोपण भी किया। इस अवसर पर पूर्व केबिनेट मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे, भाजपा जिला अध्यक्ष अवधराज बिलैया, पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष अध्यक्ष पंकज सिंह तेकाम, कलेक्टर विकास मिश्रा, पुलिस अधीक्षक संजीव सिन्हा, सीईओ जिला पंचायत नंदा भलावे कुशरे, कैलाश चंद जैन, अशोक अवधिया सहित अन्य स्थानीय जनप्रतिनिधि, अधिकारी-कर्मचारी और आमजन मौजूद थे।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने वीरांगना रानी अवंती बाई के जन्म दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का कन्या पूजन कर शुभारंभ किया। उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बताया कि रानी अवंती बाई ग्राम मनखेड़ी जिला सिवनी में 16 अगस्त 1831 को रावजुझार सिंह के यहां के यहां जन्म हुआ था। उनका विवाह रामगढ़ के राजा लक्ष्मण सिंह के पुत्र कुंवर विक्रमादित्य के साथ हुआ था। विक्रमादित्य के अल्पायु में मृत्यु होने के बाद रानी अवंती बाई ने रामगढ राज्य की बागडोर सम्हाली। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मण्डला के डिप्टी कमिश्नर अंग्रेज अफसर वाडिंगटन ने मण्डला के महाराज शंकर शाह एवं उनके वीर पुत्र, रघुनाथ शाह को तोप से उड़ा देने पर वीरांगना अवंती बाई ने क्रोधित होकर क्रांति का शंखनाद करते हुये देशवासियों में मर मिटने की भावना “जाग्रत की। तथा इस स्वतंत्रता संग्राम में अपने सहयोगियों के साथ स्वयं कूद पड़ी।
रानी अवंती बाई ने कैप्टिन वाडिगटन को दो बार पराजित किया था। परन्तु तीसरी लड़ाई में देवहारगढ़ के जंगल में अंग्रेजों से लोहा लेते रामगढ़ की ओर बढ़ी एवं शाहपुर के विश्राम गृह के पीछे तालाब के पास मंदिर में पूजन अर्चन कर आगे बालपुर के पास अंग्रेजों से चारों तरफ से घिर गई तब उन्होंने अपने आन बान शान के लिये स्वयं अपने पेट में कटार मारकर 20 मार्च 1858 को बालपुर नदी के पास वीरगति प्राप्त हुई।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न विभागों द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी का अवलोकन किया। साथ ही जिले के प्रशि़द्ध गुदुम बाजा नृतक दल से मुलाकात कर उन्हें प्रोत्साहित किया।

