जबलपुर: आदिवासी भूमि फर्जीवाड़े की खबरों के प्रकाशन पर रोक से इंकार,आरोपी पत्रकार गंगा पाठक की ओर से रखी गई मांग पर हाइकोर्ट का आदेश

 जबलपुर: आदिवासी भूमि फर्जीवाड़े की खबरों के प्रकाशन पर रोक से इंकार,आरोपी पत्रकार गंगा पाठक की ओर से रखी गई मांग पर हाइकोर्ट का आदेश
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आदिवासी भूमि फर्जीवाड़े की खबरों के प्रकाशन पर रोक से इंकार,आरोपी पत्रकार गंगा पाठक की ओर से रखी गई मांग पर हाइकोर्ट का आदेश

SET NEWS, जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने आदिवासी भूमि फर्जीवाड़े की खबराें के प्रकाशन पर रोक से इंकार कर दिया। जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की सिंगल बेंच ने आरोपी पत्रकार गंगा पाठक व पत्नी ममता पाठक के अग्रिम जमानत के आवेदन पर सुनवाई एक सप्ताह के लिए बढ़ा दी।

गुरुवार को सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता गंगा पाठक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त व पी तिवारी बहस के लिए खड़े हुए। उन्होंने जोर देकर कहा कि अपीलकर्ता द्वारा दायर जमानत आवेदन के बारे में बार-बार समाचार प्रकाशित हो रहे हैं। लिहाजा, इस संबंध में कोई निर्देश जारी किए जाएं।

आपत्तिकर्ता के वकील का विरोध भी दरकिनार:
पत्रकार गंगा पाठक की ओर से उठाई गई मांगा का आपत्तिकर्ता अधिवक्ता शैलेंद्र वर्मा गुड्डा ने विरोध किया। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-19-1-ए के अंतर्गत लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ पत्रकारिता को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है, जिसे सामान्य परिस्थिति में इस तरह किसी आरोपी की मांंग की प्रतिपूर्ति में बाधित नहीं किया जा सकता।आपत्तिकर्ता अधिवक्ता वर्मा ने आरोपी पत्रकार गंगा पाठक को संपादक निरूपित किए जाने का भी ओपन कोर्ट में विरोध किया। उन्होेंने कहा कि जिस मामले में अग्रिम जमानत चाही गई है, वह आदिवासी भूमि फर्जीवाड़े का है। मुख्य आरोपी किसी समाचार पत्र का संपादक नहीं है। इसलिए पदीय गरिमा का ध्यान रखते हुए कोर्ट केस की रिपोर्टिंग पर रोक की मांग बेमानी है।

यह था मामला-
उल्लेखनीय है कि गंगा व ममता पाठक की अग्रिम जमानत अर्जी निरस्त अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण प्रकोष्ठ के विशेष न्यायाधीश गिरीश दीक्षित की अदालत ने बहुचर्चित आदिवासी भूमि फर्जीवाड़ा प्रकरण के आरोपित जबलपुर निवासी गंगा पाठक व पत्नी ममता पाठक की अग्रिम जमानत अर्जी निरस्त कर दी थी। अभियोजन की ओर से विशेष लाेक अभियोजक कृष्णा प्रजापति ने अग्रिम जमानत अर्जी का विरोध किया था। उन्होंने दलील दी थी कि मामला बेहद गंभीर प्रकृति का है। आदिवासियों की भूमि कूटरचित तरीके से रजिस्ट्री कराए जाने का खेल खेला गया है। इस तरह के प्रकरण में आरोपितों को फरारी की स्थिति में अग्रिम जमानत का लाभ दिए जाने से समाज में गलत संदेश जाएगा। इसके अलावा एससी-एसटी एक्ट के विहित प्रविधान के अंतर्गत भी इस तरह के गंभीर प्रकृति के प्रकरणों में अग्रिम जमानत नहीं दी जानी चाहिए। आरोपितों के विरुद्ध तिलवारा व बरगी थाने में अपराध पंजीबद्ध हुआ है। गिरफ्तारी की आशंका के मद्देनजर पति-पत्नी अग्रिम जमानत चाहते हैं। नियमानुसार इस तरह के प्रकरण में सरेंडर किए बिना अग्रिम जमानत के आवेदन पर विचार का प्रश्न नहीं उठता। अदालत ने सभी तर्क सुनने के बाद अग्रिम जमानत से इनकार करते हुए अर्जी निरस्त कर दी थी। जिसके बाद हाईकोर्ट की शरण ली गई ।

jabalpur reporter

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