आज का इतिहास # “बाजीराव प्रथम: मराठा गर्जना का जनमदाता”, इतिहास के पन्नों में दर्ज एक महान योद्धा की गाथा

सेटन्यूज़, सत्यजीत यादव। 18 अगस्त 1700, यह तारीख केवल एक जन्मदिन नहीं थी, यह मराठा साम्राज्य की रणनीतिक शक्ति, अपराजित साहस और राजनीतिक चतुराई का प्रतीक बनी। इसी दिन छत्रपति शाहू महाराज के दरबार में जन्मे बाजीराव बलाल एक ऐसा नाम बने, जिसने न केवल मुगलों के साम्राज्य को पीछे धकेला बल्कि मराठों की सीमाओं को उत्तर भारत तक विस्तारित किया।
बाजीराव की जिंदगी आज भी प्रेरणा है। 2015 में बनी फिल्म “बाजीराव मस्तानी” ने उन्हें फिर से जनचर्चा में ला खड़ा किया। लेकिन सच्चा बाजीराव किताबों और युद्ध के नक्शों में दर्ज है, जिसने “स्वराज्य” के लिए तलवार चलाई, ना कि सिंहासन के लिए।
एक अपराजित योद्धा
बाजीराव प्रथम को “स्ट्रेटेजिक जीनियस” और “शिवाजी के बाद सबसे बड़ा मराठा सेनापति” माना जाता है। उन्होंने अपने 20 वर्षों के सैन्य जीवन में 41 युद्ध लड़े और कभी हार का सामना नहीं किया। उनके युद्ध कौशल और बिजली जैसी गति से किए गए हमलों ने दुश्मनों को चकित कर दिया।
प्रमुख युद्ध और जीत
– निज़ाम-उल-मुल्क के खिलाफ पुणे की रक्षा।
– दिल्ली तक मराठों का झंडा लहराना (1737)।
– बुंदेलखंड में छत्रसाल की सहायता कर मराठा प्रभाव बढ़ाना।
राजनीति में भी माहिर
बाजीराव सिर्फ तलवार के धनी नहीं थे, बल्कि गहरे राजनीतिक सोच वाले नेता भी थे। उन्होंने मराठा सत्ता को केंद्र से दूर उत्तर और पूर्व भारत तक पहुंचाया बनारस, लखनऊ और दिल्ली तक।
बाजीराव प्रथम केवल मराठा इतिहास नहीं, बल्कि भारतीय युद्धनीति और प्रशासन का स्वर्ण अध्याय हैं। 18 अगस्त को उनका जन्मदिन हमें पराक्रम, नीति और निष्ठा की याद दिलाता है। जिससे सीखकर आज का भारत भी अपने रास्ते पर अडिग रह सकता है।