Rangbhari Ekadashi: आज ही के दिन भगवान शंकर, माता पार्वती को पहली बार ले गए थे काशी

 Rangbhari Ekadashi: आज ही के दिन भगवान शंकर, माता पार्वती को पहली बार ले गए थे काशी
SET News:

फाल्‍गुन पूर्णिमा के पहले आने वाली एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। यही वह दिन जिसमें भगवान शंकर विवाह के बाद पहली बार माता पार्वती को काशी नगरी ले गए थे। धार्मिक मान्यता है कि इस संयोग में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करके आप मनोकामनाएं सिद्ध कर सकते हैं। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती को गुलाल लगाया जाता है और रंगों की होली खेली जाती है। रंगभरी एकादशी के दिन काशी के राजा बाबा विश्वनाथ माता गौरा संग पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं।

सुबह 6:32 बजे से सर्वार्थ सिद्धि योग : ज्‍योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे ने बताया कि रंगभरी एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6.32 बजे से बन रहा है। ऐसा माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन माता पार्वती से ब्याह के बाद पहली बार शिव जी गौना कराकर मातापुष्य नक्षत्र रविवार 13 मार्च को शाम 6 बजकर 44 मिनट से शुरू हो गया है जो सोमवार 14 मार्च रात 8:50 मिनट तक रहेगा। गौरा संग काशी नगरी आए थे। तब भक्तों ने भगवान शिव और मां का स्वागत गुलाल से किया था। उस समय फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। चारों और खुशी का माहौल था। शिव नगरी गुलाल से भर गई थी। इसी कारण इस दिन को रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

सेहत और सौभाग्‍य की प्राप्ति : ज्‍योतिषाचार्य पंडित प्रवीण मोहन शर्मा ने बताया कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव के साथ-साथ आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है। रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन पूजा पाठ करने से सेहत और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन अन्नपूर्णा की सोने या चांदी की मूर्ति के दर्शन करने की भी परंपरा है।

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