जबलपुर: गोपियों का भाव ही भगवान की लीला का मूल है-ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी,श्रीमद् भागवत कथा में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से भक्तों को कराया दिव्य भावनाओं का साक्षात्कार

 जबलपुर: गोपियों का भाव ही भगवान की लीला का मूल है-ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी,श्रीमद् भागवत कथा में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से भक्तों को कराया दिव्य भावनाओं का साक्षात्कार
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SET NEWS, जबलपुर। सख्य भक्ति का प्राकट्य ही भगवान की बाल लीला है, और गोपियों के उत्कृष्ट भावों का भोग ही माखन चोरी है यह दिव्य वचन श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के पांचवें दिन बगुलामुखी सिद्धपीठ शंकराचार्य मठ, सिविक सेंटर, मढ़ाताल में पूज्य ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी ने कहे। उनके श्रीमुख से जब भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन हुआ, तो पूरा पंडाल भक्ति और भावनाओं से सराबोर हो गया।

मां यशोदा का सौभाग्य और गोपियों की श्रद्धा-
ब्रह्मचारी जी ने कहा कि भगवान ने जिस प्रकार मां यशोदा को बाल रूप में अपने साक्षात दर्शन दिए, वह सौभाग्य माता देवकी को भी नहीं मिला। जब भगवान ने मिट्टी खाने की लीला की, तो यशोदा मैया को उनके मुख में सम्पूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन हुए। यह प्रसंग यह दर्शाता है कि स्नेह और श्रद्धा से भगवान को पाया जा सकता है, न कि केवल जन्म से।

माखन चोरी नहीं, भावों की पूजा थी-
गोपियों द्वारा माखन निकालना केवल एक घरेलू कार्य नहीं था, बल्कि उनका उद्देश्य केवल एक था कन्हैया को प्रसन्न करना और उनके दर्शन पाना। भगवान ने उनकी भावनाओं को स्वीकार कर, माखन चोरी की लीलाएं रचीं, जो आज भी बालकृष्ण की सबसे प्रिय और मनोहर लीलाओं में से एक मानी जाती हैं।

नाग पर नृत्य: इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश-
ब्रह्मचारी जी ने बताया कि कालिया नाग पर श्रीकृष्ण का नृत्य मात्र एक शारीरिक विजय नहीं, बल्कि आत्मा पर हावी होने वाले विकारों और इंद्रियों पर नियंत्रण का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि भगवान ने कालिया को मारा नहीं, केवल परास्त किया, क्योंकि इंद्रियों का दमन नहीं, संयम आवश्यक है।

गोचारण लीला: ब्रह्मा का अहंकार भंग-
श्रीकृष्ण की गोचारण लीला केवल गाय चराने की घटना नहीं थी, बल्कि यह ब्रह्मा के अहंकार का मर्दन था। जब ब्रह्मा ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को साधारण समझा, तब भगवान ने उन्हें अपनी ईश्वरीय महिमा का परिचय दिया। यह लीला आज के मानव को भी सिखाती है कि भक्ति और विनम्रता ही सच्चा ज्ञान है।

गिरिराज पूजन: शास्त्र सम्मत परंपरा का पुनःस्थापन-
इंद्र के घमंड को चूर कर भगवान ने गिरिराज पूजन की परंपरा की स्थापना की। यह लीला समाज में यह संदेश देती है कि परंपरा वही है जो शास्त्रों के अनुसार हो, अंधविश्वास नहीं।
चीरहरण और रास लीला: आत्मा की परमात्मा से पूर्ण एकता-
गोपियों के कात्यायनी व्रत की पूर्णता भगवान ने चीरहरण लीला के माध्यम से कराई, जिसमें उन्होंने मायारूपी आवरण को हटाकर आत्मा और परमात्मा के शुद्ध संबंध को स्पष्ट किया। रास लीला में वेणुनाद (बांसुरी की ध्वनि) के माध्यम से गोपियों को रास की पात्रता दी, जो भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाता है।

रास और उद्धव संवाद की कथा आज-
कथा के अगले दिन भगवान श्रीकृष्ण की रास लीला और उद्धव संवाद की गूढ़ व्याख्या होगी, जिसमें आत्मा और परमात्मा के संबंध को और गहराई से समझाया जाएगा।

श्रद्धा से भरा वातावरण, भक्त भावविभोर-
पंचम दिवस की कथा में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। व्यासपीठ पूजन में आचार्य राजेंद्र प्रसाद शास्त्री, विनोद गोटिया, अजय त्रिपाठी, संजय गुरु, बीके नीता पटेल, अमित, प्रतीक्षा सिंह, माया, मोतीलाल यादव, उर्मिला पांडे, विजय, ऊषा कटारिया, शंकरलाल खत्री, शमन, अन्नपूर्णा नायकार, सपना यादव, अंजना शुक्ला, गोविन्द प्रीति साहू, आराधना-आशीष चौकसे, अखिल तिवारी, तुलसी अवस्थी, पीयूष दुबे, सुनील गुप्ता, वैभव दुबे, अंकित दीक्षित, पुष्पेंद्र सिंह परिहार, शुभम चौरसिया, रोहित साहू, राहुल मौर्य, अभिषेक उपाध्याय, गौरव चौबे, आशीष चौकसे, विनोद अरोरा, नवीन यादव, रोहित तिवारी, सोनू कुरेले, मनोज सेन, सतेंद्र असाटी, शंकरलाल गुप्ता सहित कई श्रद्धालु उपस्थित रहे।

 

 

 

 

jabalpur reporter

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