जबलपुर: जीव के माया रूपी आवरण का हरण ही चीरहरण-ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी,श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिवस में चीरहरण, रुक्मिणी विवाह व कंस-वध प्रसंग पर आध्यात्मिक विमर्श

 जबलपुर: जीव के माया रूपी आवरण का हरण ही चीरहरण-ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी,श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिवस में चीरहरण, रुक्मिणी विवाह व कंस-वध प्रसंग पर आध्यात्मिक विमर्श
SET News:

SET NEWS, जबलपुर। बगलामुखी सिद्धपीठ शंकराचार्य मठ, सिविक सेंटर मढ़ाताल में चल रहे श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के छठवें दिवस पर पूज्य ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी ने दिव्य कथा का अमृतपान कराते हुए चीरहरण लीला, रासलीला, कंस वध तथा रुक्मिणी विवाह जैसे गूढ़ प्रसंगों की अद्वितीय व्याख्या की। उन्होंने कहा जब तक जीव माया के आवरण में लिप्त रहता है, तब तक वह प्रभु की लीला में प्रवेश नहीं कर सकता। माया रूपी वस्त्रों का हरण कर भगवान ने जीव को शुद्ध और पात्र बनाया यही चीरहरण की आध्यात्मिक व्याख्या है। ब्रह्मचारी जी ने बताया कि गोपियाँ प्रतीक हैं उस जीवात्मा की, जो भौतिक सुखों, अहंकार और विषय-वासनाओं में उलझकर भगवान से दूर रहती है। भगवान श्रीकृष्ण ने जब चीरहरण किया, तो वह कोई सांसारिक प्रसंग नहीं बल्कि जीवात्मा के शुद्धिकरण की महालीला थी

रासलीला- आत्मा और परमात्मा का दिव्य मिलन-
ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी ने कहा कि रासलीला केवल नृत्य या श्रृंगार की कथा नहीं, यह तो वह पावन प्रसंग है, जहाँ आत्मा परमात्मा के सान्निध्य में, पूर्ण समर्पण भाव से, नृत्य करती है। यह काम-विजय की लीला है, जहाँ इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर भक्त भगवान में लीन हो जाता है। श्रीकृष्ण की बांसुरी में भगवान शिव का समावेश यह दर्शाता है कि यह लीला केवल वैष्णव नहीं, संपूर्ण सनातन तत्वों का योग है।

कंस वध-अंतःकरण के अहंकार का विनाश-
ब्रह्मचारी जी ने कंस-वध की व्याख्या करते हुए कहा कि कंस केवल एक राक्षस नहीं था, वह अहंकार का प्रतीक है। जब व्यक्ति अपने भीतर की ईर्ष्या, क्रोध और अहंकार को समाप्त करता है, तभी वह कृष्ण अर्थात प्रेम और करुणा की ओर बढ़ता है। कंस के अंत के साथ ही भक्त के भीतर की सीमाएं टूटती हैं और वह प्रभु की गोद में स्थान पाता है।

श्रवण की शक्ति, रुक्मिणी विवाह का रहस्य-
रुक्मिणी विवाह की कथा सुनाते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा कि सत्संग और कथा श्रवण का प्रभाव इतना दिव्य होता है कि रुक्मिणी जी जैसी राजकुमारी ने भी कथा सुनकर श्रीकृष्ण को ही अपने जीवनसाथी रूप में चुन लिया। उन्होंने लिखा पत्र, भेजा ब्राह्मण और अंततः श्रीकृष्ण ने उनका हरण कर विवाह संपन्न किया। श्रवण से भाव जागृत होते हैं और जैसा भाव होगा, भगवान वैसा ही फलश्रुति प्रदान करते हैं। यही भक्ति का रहस्य है।

व्यासपीठ पूजन में श्रद्धा और भक्ति का संगम-
इस दिव्य अवसर पर व्यासपीठ का पूजन बड़े ही भक्ति भाव और श्रद्धा से सम्पन्न हुआ। पूजन करने वालों में बरगी विधायक नीरज सिंह, विधायक अशोक रोहाणी, विधायक सुशील तिवारी (इन्दु), पूर्व विधायक अंचल सोनकर, कीर्ति अभिलाष पाण्डेय, संदीप जैन, समर्थ सेठ, घनश्याम मिश्रा, दीप्ति मनीष पांडे, राजेंद्र-ममता मिश्रा, अर्पिता खरे, संतोष यादव, महेश पुरुस्वानी, विवेक गुप्ता, ऋषि अग्रवाल, शिवम-अपूर्वा चतुर्वेदी, वसुंधरा पांडे, राजेश-राधा शुक्ला, उर्मिला पांडे, अंजना शुक्ला, गोविन्द प्रीति साहू, आराधना-आशीष चौकसे, अखिल तिवारी, तुलसी अवस्थी, पीयूष दुबे, सुनील गुप्ता, वैभव दुबे, अंकित दीक्षित, पुष्पेंद्र सिंह परिहार, शुभम चौरसिया, रोहित साहू, राहुल मौर्य, अभिषेक उपाध्याय, गौरव चौबे, विनोद अरोरा, नवीन यादव, रोहित तिवारी, सोनू कुरेले, मनोज सेन, सतेंद्र असाटी, शंकरलाल गुप्ता, आयुष गुप्ता, भावेश सिंह, रामनाथ सेन, सुबोध पहाड़िया, विवेक सुहाने, मनोज सेन सहित अनेक श्रद्धालुजन उपस्थित रहे।

भक्ति का संदेश: सत्संग ही जीवन की दिशा-
कथा समापन पर ब्रह्मचारी जी ने कहा सत्संग जीवन की नाव को पार लगाने वाली पतवार है। जैसे रुक्मिणी जी ने कथा से जीवन की दिशा पाई, वैसे ही हम भी अपने अंतर्मन में भक्ति का दीप जलाएं। जब भाव शुद्ध होंगे, भगवान स्वयं पधारेंगे। सप्ताह के आगामी दिवसों में सुदामा चरित्र, श्रीकृष्ण विदाई, वंश विस्तार, परीक्षित मोक्ष जैसे प्रसंगों का वर्णन होगा। कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु जन सहभागिता कर रहे हैं।

jabalpur reporter

Related post