जबलपुर: रामलीला एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा

 जबलपुर: रामलीला एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा
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रामलीला, भारत की एक प्राचीन सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा है, जो भगवान राम के जीवन और उनके आदर्शों को नाट्य रूप में प्रस्तुत करती है। यह मुख्य रूप से *रामचरितमानस*, तुलसीदास द्वारा रचित रामायण, पर आधारित है और नवरात्रि के दौरान, विशेष रूप से दशहरा (विजयादशमी) तक, आयोजित की जाती है। रामलीला धर्म, नैतिकता, और सामाजिक एकता का प्रतीक है, जो भक्तों को राम के जीवन से प्रेरणा लेने का अवसर देती है।

पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व: रामलीला का आधार रामायण है, जो भगवान राम के जन्म, वनवास, सीता हरण, रावण वध और उनके राजतिलक की कथा कहती है। यह नाटक राम के मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप, सत्य, धर्म, और बलिदान की भावना को दर्शाता है। रामलीला का मंचन सामुदायिक एकता को बढ़ावा देता है, क्योंकि यह गाँवों और शहरों में सामूहिक रूप से आयोजित होता है। रावण दहन, जो दशहरा के दिन होता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

प्रमुख विशेषताएँ: रामलीला में राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, और रावण जैसे पात्रों को स्थानीय कलाकार निभाते हैं। यह नाटक संवाद, संगीत, और नृत्य के साथ प्रस्तुत किया जाता है। कई स्थानों पर, जैसे अयोध्या, दिल्ली, और वाराणसी, रामलीला का भव्य आयोजन होता है। इसमें रामचरितमानस के दोहे और चौपाइयाँ गाई जाती हैं, जो भक्ति और आध्यात्मिकता को बढ़ाते हैं।

आज रामलीला न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक मंच बन चुकी है। यह नई पीढ़ी को भारतीय मूल्यों और नैतिकता से जोड़ती है। आधुनिक तकनीक, जैसे प्रकाश और ध्वनि प्रभाव, ने इसे और आकर्षक बनाया है। रामलीला यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में भी शामिल है।

रामलीला सिर्फ़ एक नाटक नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो राम के आदर्शों को जीवंत करती है। यह हमें सत्य, धर्म, और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

jabalpur reporter

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