नरोत्तम के ‘जाल’ में फंस गए पटवारी:कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष पद की होड़; इस बीच आए एक बयान ने कार्यकारी अध्यक्ष को कर दिया बेचैन…

बजट सत्र शुरू होते ही कांग्रेस दो धड़े में बटी नजर आई। विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले पूर्व मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी ने राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार कर दिया। वे यह ऐलान कर मीडिया की सुर्खियों में तो आ गए, लेकिन पार्टी ने उनके बयान से किनारा कर लिया। नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने सदन में दो टूक कह दिया- यह पार्टी का फैसला नहीं है। उन्हें भी ट्वीट से ही इसकी जानकारी मिली है। इस फैसले पर न तो अभी वे उससे सहमत हैं और न ही आगे सहमत होंगे। उन्होंने कहा कि वे सदन की परंपराओं का पालन करते हैं।
सवाल यह है कि जीतू पटवारी ने पार्टी को विश्वास में लिए बिना ही राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार करने का फैसला क्यों लिया? इसको लेकर पार्टी के नेताओं का कहना है कि जीतू पटवारी नेता प्रतिपक्ष बनने की दावेदारी कर रहे हैं। लेकिन, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने उन्हें अपने जाल में फंसा लिया। डॉ. मिश्रा ने बजट सत्र शुरू होने से एक दिन पहले कहा था- कमलनाथ को कांग्रेस के सीनियर और अनुभवी नेता डॉ. गोविंद सिंह को प्रतिपक्ष बनाने के लिए एक पद छोड़ना चाहिए, क्योंकि कमलनाथ पूरे समय सदन में उपस्थित नहीं रहते हैं। पिछले सत्र के बीच में भी कमलनाथ दिल्ली चले गए थे।
इस बयान से विचलित हो गए पटवारी
नरोत्तम मिश्रा के सवाल उठाने के बाद पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस के सीनियर लीडर डॉ. गोविंद सिंह का एक बयान सामने आ गया था। उन्होंने कहा था- नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ के पास दोहरी व ज्यादा जिम्मेदारी है। वे प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में वह नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए तैयार हैं। पार्टी के एक सीनियर लीडर ने कहा कि डॉ. सिंह के इस बयान से पटवारी विचलित हो गए हैं। उन्हें लगने लगा कि नेता प्रतिपक्ष बनने की उनकी दावेदारी कमजोर हो रही है। पटवारी प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष हैं। यही वजह है कि नेता प्रतिपक्ष बनने की उनकी दावेदारी कमलनाथ खारिज कर चुके हैं। उन्होंने कमलनाथ को विश्वास में लिए बिना ही राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया।
विधायक दल की बैठक से गायब रहे पटवारी
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि रविवार को कमलनाथ के निवास पर विधायक दल की बैठक हुई थी। इस बैठक में जीतू पटवारी नहीं पहुंचे थे। जबकि, पटवारी उन सीनियर विधायकों में से एक हैं, जिन्हें सदन में पार्टी की तरफ से पक्ष रखने की जिम्मेदारी दी जाती रही है। ऐसे में उनका बैठक में मौजूद नहीं रहना भी इस तरफ इशारा करता है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है।
इस बैठक में बजट सत्र में सरकार को घेरने के लिए रणनीति बनाई गई। इस दौरान यह तय हुआ कि कौन-कौन से मुद्दे उठाए जाएंगे और कौन विधायक सदन में बोलेंगे? इस दौरान राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार को लेकर कोई बात नहीं हुई। न ही पटवारी ने इसकी जानकारी नेता प्रतिपक्ष को दी।
यह कहा था पटवारी ने
सोशल मीडिया पर लिखा- राज्यपाल का अभिभाषण कैसे सुना जा सकता है? मध्यप्रदेश ने गायों की हत्या के मामले में विश्व में नाम कर दिया। इस सरकार में लोकतंत्र की हत्या की गई। सरकार ने पंचायत चुनाव, स्थानीय निकाय के चुनाव नहीं कराए। प्रदेश 3 लाख करोड़ से ज्यादा के कर्जे में है। हर व्यक्ति पर करीब 50 हजार रुपए का कर्ज है। उन्होंने वीडियो जारी करते हुए कहा- किसानों का कर्जा खा गए, किसानों के बीमा में अनियमितता और गबन हो गया। मप्र में 3 हजार 500 नई शराब की दुकानें खोल दीं। सरकार से सवाल नहीं पूछ सकते, रोजगार की बात नहीं कर सकते। शराबी बनो और मस्त रहो। हर घर में शराब रखो। ऐसा प्रदेश का मुख्यमंत्री दूसरा नहीं देखा। ऐसे मुख्यमंत्री की सरकार का अभिभाषण कैसे सुना जा सकता है।
इधर, कमलनाथ को मिला शिवराज का साथ
विधानसभा में पटवारी के फैसले को कमलनाथ ने गलत करार दिया तो पार्टी विधायकों के साथ उन्हें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी साथ मिला। मुख्यमंत्री ने इस मामले में मीडिया से कहा- विधानसभा की अपनी गरिमा है। हम दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उसका सम्मान करते हैं। पटवारी ने मीडिया में छपने के लिए सोशल मीडिया पर बहिष्कार किया। मैं कमलनाथ जी का आभारी हूं कि उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर यह कहा कि यह गलत परंपरा है।
सज्जन सिंह वर्मा बोले- जो बेदाग होगा, वह बनेगा नेता प्रतिपक्ष
डॉ. गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाने को लेकर कमलनाथ के करीबी सज्जन सिंह वर्मा ने रविवार को कहा था कि नेता प्रतिपक्ष वही बनेगा, जो युवा होगा, बेदाग होगा और जिस पर कोई आरोप नहीं होगा। वर्मा के इस बयान से साफ है कि कमलनाथ के करीबी नेता पटवारी और डॉ. गोविंद सिंह, दोनों के नेता प्रतिपक्ष बनने के खिलाफ हैं। नरोत्तम मिश्रा ने डॉ. गोविंद सिंह का नाम उछालकर कांग्रेस की सियासत गरमा दी और पटवारी को अपने जाल में फंसा लिया। दरअसल, सिंह और पटवारी को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का करीबी कहा जाता है।
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