बेबाक रहे पूर्व CJI आरसी लाहोटी:दो से ज्यादा बच्चे होने पर चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय दिया था; जानिए- उनके बड़े फैसले और विवाद

 बेबाक रहे पूर्व CJI आरसी लाहोटी:दो से ज्यादा बच्चे होने पर चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय दिया था; जानिए- उनके बड़े फैसले और विवाद
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पूर्व CJI आरसी लाहोटी का बुधवार शाम निधन हो गया। मूलत: गुना के रहने वाले जस्टिस लाहोटी ने दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में 82 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। वह 1 जून 2004 से 31 अक्टूबर 2005 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) रहे। वे रिटायरमेंट के बाद से ही नोएडा में रह रहे थे। 5 दिन पहले तबीयत बिगड़ने पर उन्हें एडमिट कराया गया था। उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में पूरे प्रोटोकॉल के साथ किया जाएगा।

जस्टिस​​​​​​​ लाहोटी कम शब्दों में बेबाकी से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते थे। जितना जरूरी होता, उतना ही बोलते थे। 17 महीनों तक वह CJI के पद पर रहे। पढ़िए, उनके कुछ बड़े फैसले और विवाद…

पूर्ववर्ती CJI का बयान खारिज किया
अपनी नियुक्ति के बाद 2004 में ही वह तब सबसे ज्यादा चर्चा में आए, जब अपने से पहले रहे CJI के उस बयान को खारिज किया, जिसमें उन्होंने न्यायपालिका में उभरते भ्रष्टाचार के बारे में चिंता व्यक्त की थी। उस समय जस्टिस लाहोटी ने स्पष्ट रूप से राय दी थी कि न्यायपालिका पूरी तरह से ‘स्वच्छ’ है। यह उस समय काफी चर्चित वक्तव्य था, क्योंकि मीडिया में भ्रष्ट न्यायाधीशों के बारे में लिखा जा रहा था।

न्यायिक तबादले पर चर्चा में रहे
2005 में एक न्यायिक तबादले में भी वह काफी चर्चित रहे। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीके रॉय का तबादला हरियाणा कोर्ट से आसाम उच्च न्यायालय कर दिया था। तब बार काउंसिल के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद एस नरीमन ने लेटर लिखकर इस तबादले पर सवाल उठाए थे। अध्यक्ष ने CJI को पत्र लिखकर इस तबादले को ‘दंडात्मक’ बताया था। उन्होंने इसे ‘गंभीर परिणामों से भरा मामला’ करार दिया। बीके रॉय के बारे में यह माना जाता है कि वह एक उच्च न्यायालय के प्रधान बनने के काबिल नहीं हैं, तो फिर उन्हें दूसरे राज्य के उच्च न्यायालय का प्रधान क्यों बनाया गया है।

निजता और धर्म के तर्क खारिज किए
अपने कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति लाहोटी ने हरियाणा के उस कानून को बरकरार रखा, जिसके तहत दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने निजता और धर्म के अधिकार पर आधारित तर्कों को खारिज कर दिया। उनके इस निर्णय ने काफी सुर्खियां बंटोरी थीं।

1983 अवैध प्रवासी एक्ट रद्द किया
उनका एक और निर्णय, जो सबसे ज्यादा चर्चित रहा, वो था आसाम में प्रवासियों पर अवैध प्रवासियों (ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारण) अधिनियम को रद्द करना। 2005 में असम गण परिषद के सांसद सर्बानंद सोनोवाल ने इस एक्ट के खिलाफ एक रिट याचिका दायर की। इस याचिका को स्वीकार करते हुए तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से 1983 अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम को रद्द कर दिया। इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी, न्यायमूर्ति जीपी माथुर और पीके बालासुब्रमण्यन शामिल थे।

उन्होंने इसे संविधान के अधिकार से बाहर होने के रूप में बनाए गए नियम के रूप में घोषित किया। सोनोवाल ने तर्क दिया था कि आईएमडीटी अधिनियम अवैध प्रवासियों की समस्या को संबोधित किए बिना केवल वोट बैंक की राजनीति को प्रोत्साहित कर रहा है। वहीं, असम सरकार ने इस कानून का समर्थन किया था।

तमिलनाडु के चर्चित कांची शंकराचार्य मामले में जमानत दी
मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी उस समय भी चर्चा में आए, जब उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम समय में तमिलनाडु के चर्चित कांची शंकराचार्य मामले में आरोपियों को जमानत दे दी। 3 सितंबर 2004 को तमिलनाडु के कांचीपुरम मंदिर के कार्यालय में धारदार हथियार से शंकर रमन की हत्या कर दी गई थी। दोनों शंकराचार्यों के खिलाफ वित्तीय हेरफेर के आरोप लगे थे। शंकर रमन के परिजन ने शंकराचार्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद विष्णुकांची थाने में केस दर्ज हुआ और इस मामले की जांच शुरू कर दी गई थी।

पुलिस ने आईपीसी की धारा 302, 34 और 120B के तहत केस दर्ज किया था। 11 नवंबर 2004 को जयेंद्र को शंकर हत्याकांड की साजिश रचने के आरोप में दीपावली की रात में आंध्र प्रदेश से गिरफ्तार किया गया। पूरे देश में खूब हंगामा हुआ। कहा तो यह भी जाता है कि तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को कॉल किया। जस्टिस लाहोटी ने शंकराचार्य को जमानत दी।

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