जबलपुर: भक्त के पराधीन हैं भगवान-ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी,भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर हुआ गजेन्द्र मोक्ष, समुद्र मंथन, वामन और श्रीकृष्ण अवतार का जीवंत वर्णन

SET NEWS, जबलपुर। बगलामुखी सिद्धपीठ शंकराचार्य मठ, सिविक सेंटर मढ़ाताल में चल रहे श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चतुर्थ दिवस की कथा में श्रद्धा, भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम देखने को मिला। पूज्य ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी महाराज ने अपने ओजस्वी और भावपूर्ण प्रवचनों के माध्यम से भक्तों को भगवान की भक्ति के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराया। अपने प्रवचन की शुरुआत करते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा भगवान अपने सच्चे भक्त के वश में होते हैं। वह शरण में आए जीव का तारण करने सदैव तत्पर रहते हैं। उन्होंने गजेन्द्र मोक्ष की कथा सुनाई और बताया कि हमारा अहंकार ही गज है। जब उसे मृत्यु रूपी ग्राह पकड़ता है, तब भगवान उसका उद्धार करते हैं। यह प्रसंग जीवन में विनम्रता और शरणागति का महत्व स्पष्ट करता है। इस अवसर पर शंकराचार्य गिरी जी महाराज, ब्रह्मचारी सुबोधनंद जी द्वारा व्यासपीठ एवं श्रीमद्भागवत का विधिवत पूजन किया गया।
गजेन्द्र मोक्ष: अहंकार का अंत और प्रभु की शरण-
ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी महाराज ने कथा का आरंभ गजेन्द्र मोक्ष से किया। उन्होंने कहा गजेन्द्र हमारे भीतर के उस अहंकार का प्रतीक है जो हमें प्रभु से दूर करता है। जब यह अहंकार मृत्यु रूपी ग्राह द्वारा जकड़ लिया जाता है, तब ही प्राणी को प्रभु की सच्ची शरण की आवश्यकता समझ आती है।
समुद्र मंथन: संघर्ष में छिपा जीवन का अमृत-
देवता और दानव, दोनों के मिलकर समुद्र मंथन करने की कथा ने यह संदेश दिया कि सच्चा अमृत वही है जो आत्ममंथन और संयम से प्राप्त हो। ब्रह्मचारी जी ने इसे आज की जीवन शैली से जोड़ते हुए कहा कि जब तक हम अपने भीतर की बुराइयों को बाहर नहीं निकालते, तब तक दिव्यता प्राप्त नहीं होती।
मत्स्य वामन अवतार: समर्पण का प्रतीक-
मत्स्य अवतार के माध्यम से भगवान ने सत्यव्रत मनु को जीवन का पाठ पढ़ाया,
वहीं वामन अवतार में बलि महाराज की भक्ति और समर्पण को सर्वोच्च स्थान दिया गया। तीन पग पृथ्वी मांगकर भगवान ने बलि का सर्वस्व ले लिया नहीं, बल्कि उसे स्वयं प्रभु बना दिया, यह बताते हुए ब्रह्मचारी जी ने भक्ति के मर्म को उजागर किया।
श्रीराम-श्रीकृष्ण मर्यादा और प्रेम का महापाठ-
ब्रह्मचारी चैतन्यानंद जी महाराज ने कहा कि श्रीराम, महाराज मनु और शतरूपा की तपस्या का फल थे। भगवान ने चतुर्व्यूह स्वरूप में दशरथ के यहां अवतार लिया और धर्म की पुनः स्थापना की। वहीं कृष्ण जन्म की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि वसुदेव और देवकी से जन्म लेकर भगवान ने नंद-यशोदा के वात्सल्य को स्वीकार किया, जिससे प्रेम, सेवा और त्याग का महत्व उजागर हुआ।
कृष्ण जन्मोत्सव: भक्ति में झूम उठा पूरा परिसर-
जैसे ही कृष्ण जन्म का प्रसंग आया, पूरा पंडाल नंद के घर आनंद भयो… के भजनों से गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने झूले सजाए, माखन-मिश्री से भोग लगाया, और आंसुओं से भीगी आंखों से लीलाओं का रसपान किया। श्रद्धा, भक्ति और कथा रस से सराबोर यह आयोजन प्रतिदिन आध्यात्मिक वातावरण को और दिव्य बना रहा है।
विशिष्ट अतिथियों के साथ उमड़े श्रद्धालु-
कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री राकेश सिंह, नगर भाजपा अध्यक्ष रत्नेश सोनकर, नीता पटेल, पूर्व महापौर प्रभात साहू, अजय खंडेलवाल, प्रतीक्षा सिंह, हेमंत ऋचा मिश्रा, गोविन्द प्रीति साहू, आराधना-आशीष चौकसे, राजेंद्र ममता मिश्रा, गीता व्यास, अंजना शुक्ला, अखिल तिवारी, तुलसी अवस्थी, पीयूष दुबे, सुनील गुप्ता, वैभव दुबे, अंकित दीक्षित, पुष्पेंद्र सिंह परिहार, शुभम चौरसिया, रोहित साहू, राहुल मौर्य, अभिषेक उपाध्याय, गौरव चौबे, आशीष चौकसे, विनोद अरोरा, नवीन यादव, सोनू कुरेले, मनोज सेन, सतेंद्र असाटी सहित सैकड़ों श्रद्धालु कथा श्रवण हेतु उपस्थित रहे।