जबलपुर के शिवमंदिरों की रोचक है कहानी:भगवान राम ने किया था गुप्तेश्वर महादेव को स्थापित, भेड़ाघाट में गौरीशंकर चौसठ योगिनी मंदिर और बादशाह हलवाई स्थित पंचमुखी शिव की अद्भुत है महिमा

जबलपुर मां नर्मदा के तट पर बसा शहर है। मान्यता है कि नर्मदा का हर कंकड़ शंकर है। जबलपुर में भगवान भोलेनाथ के कई मंदिर हैं। गुप्तेश्वर में स्थापित शिवलिंग को रामेश्वरम ज्योर्तिलिंग का उपलिंग माना जाता है। इस शिवलिंग को भगवान राम ने वनगमन के समय नर्मदा तट के त्रिपुरी तीर्थ में गुप्त वास के दौरान रेत से बनाया था।
10वीं सदी में बना गौरीशंकर चौसठ योगिनी मंदिर और 13वीं सदी में बादशाह हलवाई के पास स्थित पंचमुखी भगवान भोलेनाथ मंदिर की महिमा से लोग खींचे चले आते हैं। महाशिवरात्रि पर जानें जबलपुर के शिव मंदिरों की रोचक कहानियां…
सबसे प्राचीन है गुप्तेश्वर का महादेव मंदिर
जबलपुर के गुप्तेश्वर में स्थित गुप्तेश्वर महादेव सबसे प्राचीन शिवमंदिर है। बाल्मीक रामायण और श्रीशिव महापुराण में इसका उल्लेख है। यहां बताया गया है कि भगवान राम ने वनगमन के समय इसकी स्थापना की थी। नर्मदा तट के त्रिपुरी तीर्थ में वे गुप्त वास करते हुए रेत से अपने आराध्य भगवान शंकर का शिवलिंग बनाया था। गुफा में होने के चलते ही इस शिवलिंग का नाम गुप्तेश्वर पड़ा। महाशिवरात्रि पर 48 घंटे का विशेष पूजन-अर्चन हो रहा है।
भगवान गैवीनाथ का प्राकृतिक स्वरूप
मेडिकल कॉलेज स्थित पुराने बस स्टैंड के सामने बने गैवीनाथ मंदिर द्वापर युग का माना जाता है। यहां भगवान का चट्टान पर प्राकृतिक स्वरूप देखने मिलता है। यहां पिंडी बहुत छोटी है, लेकिन शिवलिंग स्पष्ट नजर आता है। इसे त्र्यम्बकेश्वर का उपलिंग माना जाता है
पुराणों में भी भगवान गैवीनाथ का उल्लेख हैं। कल्चुरी काल में भगवान गैवीनाथ की उपासना की जाती रही। गोंडकाल में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। राजा निजामशाह ने 1765 में यहां विशाल यज्ञ कराया गया था। गोंड राजा नरहरिशाह नर्मदा जल से भगवान का विशेष अभिषेक करते थे
गौरीशंकर चौसठयोगिनी मंदिर: यहां मां नर्मदा को मोड़ देनी पड़ी धारा
विश्व प्रसिद्ध भेड़ाघाट के पास 50 फीट ऊंचे पर्वत पर बना प्रसिद्ध गौरीशंकर चौसठयोगिनी मंदिर के बारे में किवदंती है कि भगवान शंकर और माता पार्वती भ्रमण पर निकले थे। भेड़ाघाट में ऊंचाई वाले स्थान पहुंचे। यहां सुवर्ण ऋषि तप कर रहे थे। भगवान के दर्शन पाकर वे प्रसन्न हो गए। भगवान शंकर व मां पार्वती से प्रार्थना की, हे भगवन जब तक वे नर्मदा पूजन कर न लौटें, आप यहीं ठहरें। ऋर्षि सुवर्ण के मन में मां नर्मदा का पूजन करते समय भाव आया कि भगवान यहीं विराजमान हो जाएं तो सभी का कल्याण होगा।
ऋषि ने जल समाधि ले ली। ऋषि की प्रतीक्षा में भगवान यहीं विराजमान हो गए। तब भगवान शंकर ने नर्मदा से प्रार्थना की कि वे दाएं की बजाय बाएं ओर से प्रवाहित हों, जिससे श्रद्धालुओं काे दर्शन करना सुगम हो जाए। मां नर्मदा ने कहा कि विशालकाय चट्टानों के बीच से रास्ता बनाना संभव नहीं।
कहते हैं कि भगवान शंकर के प्रभाव से यहां के पहाड़ तीन दिन के लिए मक्खन की तरह कोमल हो गए और मां नर्मदा ने अपना मार्ग बदला तो धुआंधार की उत्पत्ति हुई। नर्मदा का पुराना मार्ग अब भी बैनगंगा बूढ़ी नर्मदा के नाम से जाना जाता है। कल्चुरी शासक युवराजदेव ने त्रिभुजी कोण संरचना पर आधारित इस मंदिर का निर्माण कराया है। पुरातत्व विभाग इसकी देख-रेख करता है।
पंचमुखी भगवान महादेव का मंदिर: 34 पिलरों पर बना है ये अद्भुत शिव मंदिर
13वीं सदी में स्थापित पंचमुखी भगवान महादेव शिवमंदिर के गुंबद में ही ‘श्रीयंत्र’ अपनी आभा बिखेरता है। शहर में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां कई किलोमीटर लंबी गुफा आज भी मौजूद है। किवदंती है कि सालों पहले नर्मदा परिक्रमा करने वाले शिवभक्त मिष्ठान हलवाई को इस छोटी सी पहाड़ी पर सिद्ध स्थल होने की अनुभूति हुई थी। उन्होंने स्वयंभू शिवलिंग की स्थापना कर पूजन प्रारंभ किया।
कालांतर में ये मंदिर बादशाह हलवाई मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां भगवान शिव की अति प्राचीन पंचमुखी 10 भुजाधारी मूर्ति शिवलिंग के साथ स्थापित है। उनके साथ 16 भुजाधारी श्रीगणेश, 27 नक्षत्र, नवग्रह, अष्ट भैरव की कल्चुरी कालीन प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। 34 पिलर पर बने इस मंदिर में शिवगणों की आकृति बनी हुई है।
ग्वारीघाट के पंचायतन शिव मंदिर में चार पहर होती है पूजा: गोंडवाना काल का है शिवमंदिर
संस्कारधानी के नर्मदा तट खारीघाट (ग्वारीघाट) स्थित हजारों वर्ष प्राचीन शिव पंचायतन मंदिर में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। शिव पंचायतन की स्थापना जहां पर भी होती है वहां पर शिवरात्रि के विभिन्न पहरों में पूजन व अभिषेक विशिष्ट फलदायी होता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार जबलपुर (मप्र) में मां नर्मदा तट के खारी घाट स्थित प्राचीन गोंडवाना काल के शिव पंचायतन मंदिर में पूजन का विशेष महत्व है।
कैलाशधाम-एक किमी की पहाड़ी पर बना है ये मंदिर, पौधा लगाने से पूरी होती है मनोकामना
मटामर में स्थित कैलाशधाम मंदिर में भगवान शंकर के साथ-साथ प्रकृति की पूजा होती है। मान्यता है कि यहां एक पौधा रोपने के साथ भगवान का दर्शन करने पर सभी मनोकामना पूरी हो जाती है। किवदंती है कि वर्ष 1980 में संत रामूदादा को भगवान शंकर ने स्वप्न दिया था कि मैं भेड़ाघाट के स्वर्गद्वारी में हूं। वहां से लाकर अपने तपस्थली पर स्थापित करो। इसके बाद वे स्वर्गद्वारी गए तो यहां आकर पहाड़ पर भगवान शंकर की पिंडी स्थापित की। तब से ये कैलाशधाम के रूप में प्रसिद्ध होता गया। वर्तमान में यहां जीसीएफ से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले रामूदादा पूजा करते हैं।
पर्यटन का केंद्र बन गया: कचनार सिटी में बना 76 फीट ऊंची भगवान शंकर की प्रतिमा
कचनार सिटी में शंकर भगवान की 76 फीट ऊंची प्रतिमा के दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां शिव भगवान की बैठी हुई मुद्रा में प्रतिमा बनी है। प्रतिमा के अंदर ही आपको एक गुफा देखने मिलेगी। गुफा के अंदर 12 शिवलिंग की स्थापना की गई है। आप गुफा में एक दरवाजे से घुसते हैं और 12 शिवलिंगों के दर्शन करते हुए दूसरे दरवाजे से बाहर आ जाते हैं। मंदिर परिसर में खूबसूरत गार्डन है। महाशिवरात्रि पर यहां हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने पहुंचेंगे।